- पेपर लीक प्रकरण के दौरान उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने सख्त नकलरोधी कानून बनाने का प्रस्ताव पास कर दिया है।
- आयोग जल्द ही अपनी सभी परीक्षाएं 2टीयर परीक्षा पैटर्न के आधार पर कराने की तैयारी कर रहा है। इसमें पहले प्री फिर मेन एक्जाम होगा।
- पेपर लीक मामले में एसटीएफ ने 26 अगस्त को आयोग की आउटसोर्स कंपनी आरआईएमएस कंपनी के मालिक राजेश चौहान को गिरफ्तार कर लिया है। इसी कंपनी के कर्मचारियों पर पेपर लीक करने के आरोप हैं।
प्रदेश में कब तक युवा ठगे जाते रहेंगे, कब रुकेगी नौकरियों की बंदरबांट। सरकारी नौकरी हर युवा का सपना होता है पर मिलती उन चुनिंदा लोगों को जो योग्य होते हैं। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में ऐसा नहीं हो रहा है, पढ़े-लिखे युवाओं को निराशा और पैसे वाले को एक रात में पेपर मिलने से सरकारी नौकरी की गारंटी है। राज्य में मेहनती और काबिल लोगों के अरमानों पर नौकरी के सौदागर पानी फेर रहे हैं और ऐसा सालों से चला आ रहा है। इसका जिक्र करने की जरूरत इन दिनों इसलिए हुई क्योंकि यूकेएसएसएससी भर्ती घोटाला हर युवा की जुबां पर है। अब नौकरियों के कुछ सौदागरों के पकड़े जाने से आयोग में रजिस्टर्ड पांच लाख से ज्यादा युवाओं को कुछ राहत जरूर मिली होगी लेकिन जब तक इन्हें सजा नहीं हो जाती उन युवाओं के कलेजे को ठंडक नहीं मिलेगी जो रात-दिन देखे बगैर समय और पैसा खर्च कर नौकरी पाने का सपना देखते हैं। फिलहाल हर बेरोजगार के पास इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं हैं क्योंकि नई परीक्षाएं कब से शुरू होगी और कितनी परीक्षाएं रद्द होंगी यह सवाल केवल पहेली है। जानते हैं कि आयोग गठन के बाद से पेपर लीक प्रकरण से जुड़ी हर जरूरी बात जिसे आप जानना चाहेंगे।
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग यूकेएसएसएससी का जब साल 2014 में गठन हुआ तो बेरोजगार युवाओं में भर्तियों में पारदर्शिता और नकलविहीन परीक्षाएं होने की उम्मीद जगी जो समय के साथ धीरे-धीरे धूमिल होती चली गईं। अधिकतर भर्तियों के हाईकोर्ट में जाने तो कभी भर्तियों के निरस्त होने से बेरोजगार युवाओं में लगातार निराशा बढ़ती गई। ब्लूटूथ से नकल का मामला या गलत सवाल पूछने से सहायक लेखाकर की लिखित परीक्षा रद् होना रहा हो, तमाम ऐसे मौके आए जब सरकार से लेकर आयोग के अधिकारियों को बेरोजगारों के आक्रोश का सामना करना पड़ा। इतना होने तक भी युवा अपने धैर्य के साथ सरकारी नौकरी की उम्मीद में फार्म भरते और लंबे इंतजार के बाद परीक्षा देते रहे। समय निकलता गया और साल 2021 आ गया और दिसंबर में 916 पदों के लिए संयुक्त स्नातक स्तरीय परीक्षा हुई। साल 2022 में रिजल्ट आया तो हल्द्वानी का 92 अंक पाने वाला छात्र टॉपर बन गया। बताते हैं कि परीक्षा के बाद ही आयोग को परीक्षा में गड़बड़ी के संकेत मिल गए थे। आयोग ने अपने स्तर से मामले में जांच शुरू करवा दी थी। मामला एसटीएफ तक पहुंच गया था। मामला इतना बड़ा था कि पेपर में गड़बड़ी होने की बू बाहर भी फैलने लगी। इधर आयोग जांच के साथ साथ परीक्षा में पास अभ्यर्थियों को नौकरी देने की तैयारी कर रहा था। युवाओं के दस्तावेजों का वेरीफिकेशन भी शुरू हो गया था। इस बीच परीक्षा में गड़बड़ी की जांच भी चल रही थी। बाहर परीक्षा को रद् करने के लिए प्रदर्शन होने लगे।
आखिर आयोग ने मामले में मुकदमा दर्ज कराया। मामले की जांच एसटीएफ को सौंपी गई। फिर धीरे-धीरे परतें खुलने लगीं। गिरफ्तारी की शुरुआत दून के कोचिंग इंस्टीट्यूट संचालक से हुई। इस बीच कुमाऊं के पूर्व पीआरडी कर्मी और लखनऊ की प्रिंटिंग प्रेस के कर्मचारी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। शुरुआत में पेपर प्रिंटिंग प्रेस से आउट होने की बात सामने आई। फिर क्या था कड़ी से कड़ी जुड़ती गई और सरकारी कर्मचारियों से लेकर संविदा कर्मी भी फंसते चले गए। बताया गया कि पेपर 10 से 15 लाख रुपये में कद्दू की तरह बंटा। सरकार से लेकर आयोग पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। इस बीच आयोग के अध्यक्ष एस राजू आगे आए और नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। पेपर लीक की चिंगारी में पूरा प्रदेश सुलगने लगा। इस बीच एक भाजपा नेता का नाम चर्चा में आया। उसे ही पेपर लीक का मास्टरमाइंट बताया जाने लगा। आरोपी के विदेश भागने की चर्चा हुई। एसटीएफ ने आखिर विदेश से लौटने के बाद भाजपा के जिला पंचायत सदस्य हाकम सिंह निवासी मोरी उत्तरकाशी को गिरफ्तार कर ही लिया। भाजपा ने भी बिना समय लिए आरोपी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। आरोपी हाकम से पूछताछ में खुलासा हुआ कि कई अभ्यर्थियों को पेपर यूपी के धामपुर स्थित सेंटर में हल कराया गया। परीक्षा से ठीक पहले उन अभ्यर्थियों को परीक्षा केंद्र पर छोड़ा गया। इस बीच हाकम सिंह के करीबी बताए जा रहे रामनगर निवासी स्टोन क्रशर संचालक चंदन मनराल तक भी एसटीएफ पहुंच गई।
पता चला कि क्रशर संचालक मनराल की शुरुआत में बसें चलती थी। धीरे-धीरे गलत तरीके से लोगों को नौकरियां दिलाकर उसने अंकूत संपत्ति बना ली थी। प्रदेश में आयोग गठन से पहले शिक्षा मित्रों की नौकरी उस पर धांधली से नौकरी दिलाने के आरोप लगे थे। उसने भी अभ्यर्थियों को धामपुर ले जाकर पेपर हल कराया था और इसके एवज में उसने लाखों रुपये लिए थे। बड़ी मछलियां अंदर जा चुकी थी। इस बीच एसटीएफ ने वन रक्षक, सचिवालय में गार्ड और कनिष्ठ सहायक परीक्षा में गड़बड़ी होने की बात कही। इन सभी भर्तियों में पास अभ्यर्थी प्रदेश में एकाद साल की नौकरी तक कर चुके हैं। हालांकि वन रक्षक भर्ती शुरुआत से विवाद में रही थी। इस परीक्षा में दून और हरिद्वार के सेंटरों में ब्लूटूथ के जरिए नकल होने की बात सामने आइ। बाहर पेपर रद्द होने की मांग उठने लगी थी लेकिन कुछ सेंटरों पर दोबारा परीक्षा कराकर रिजल्ट जारी कर दिया गया। संयोग कहें या कुछ और पर रिजल्ट उस दिन जारी हुआ था जिस दिन माननीय त्रिवेंद्र रावत को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। नकल करने वाले आरोपियों पर आयोग की ओर से मुकदमा भी कराया गया था। मामला हाईकोर्ट में भी गया था।
हालांकि आरोपियों पर बड़ी कार्रवाई नहीं हो पाई और वह बचकर निकल गए। इधर वर्तमान सीएम पुष्कर सिंह धामी पर पेपर लीक प्रकरण में संयुक्त स्नातक स्तरीय परीक्षा रद्द कर सीबीआई जांच का दबाव बनने लगा। आखिर सीएम ने हिम्मत दिखाते हुए 24 अगस्त को सभी धांधली वाली परीक्षाओं को रद्द करने और दागी कर्मचारियों की नौकरी छीनने का बयान देकर संदेश दिया कि भ्रष्टाचारियों को नहीं छोड़ा जाएगा और सरकार जीरो टॉलरेंस पर अमल करते हुए चल रही है। 25 अगस्त को एसटीएफ ने एक और बड़ा खुलासा किया जिससे पंतनगर विवि के पूर्व एईओ दिनेश चंद्र को सचिवालय रक्षक पेपर लीक मामले में गिरफ्तार कर लिया। एसटीएफ ने बताया कि हल्द्वानी निवासी आरोपी को पेन ड्राइव में लखनऊ की प्रिंटिंग प्रेस से पेपर मिला था। उसके बाद पेपर को 10-10 लाख में युवाओं को बेचा गया। अब बड़ा सवाल कि ये गिरफ्तारियां और नए खुलासे कब तक चलते रहेंगे। कब तक इन मामलों में जांच पूरी होगी, क्या पुलिस आरोपियों को कोर्ट में दोषी साबित कर पाएगी या फिर इनमें कई फिर बचके निकल जाएंगे। कब तक युवा इस मकड़जाल में फंसकर परीक्षाओं का इंतजार करता रहेगा शायद इसका जवाब भविष्य के गर्त में छिपा है।
आयोग के प्रमुख कार्य गठन के बाद से अब तक
- 19 हजार 390 पदों पर भर्तियों के अधियाचन साल 2022 तक आयोग के पास आए
- चार हजार से ज्यादा पदों पर सात लिखित परीक्षाएं होनी बाकी हैं।
- 1450 पदों पर आयोग भर्तियां निकालने वाला था लेकिन इस बीच पेपर लीक प्रकरण आ गया।
- वन टाइम रजिस्ट्रेशन लागू
कौन हैै हाकम सिंह
हाकम सिंह रावत को अब तक पेपर लीक प्रकरण में सबसे बड़ा मास्टरमाइंड बताया जा रहा है। पेपर बनाने वाली कंपनी में साठगांठ लेकर अभ्यर्थियों तक सबसे बड़ी कड़ी के रूप में हाकम सिंह का नाम सामने आया हे। बतातें हैं कि उत्तरकाशी के एक प्रशासनिक अधिकारी के घर में हाकम कुक का काम करता था। फिर वह उसी अधिकारी का ड्राइवर बन गया। हरिद्वार में उसने इस धंधे में कदम रखा। धीरे-धीरे वह अपनी पैठ नामी लोगों में बनाता रहा। साल 2008 में उसने गांव की राजनीति में कदम रखा। साल 2019 में वह उत्तरकाशी जिले में जिला पंचायत सदस्य बन गया। यहां से शुरू पीछे मुड़कर नहीं देखा। हुआ उसका असल खेल। मोरी और पुरोला क्षेत्र में हाकम सिंह रावत का नाम सरकारी नौकरी लगाने की गारंटी के रूप में लिया जाता है। अब होम स्टे, होटल से लेकर बागीचे सहित कई बड़ी संपत्तियों का मालिक हाकम सिंह रावत है।
इन परीक्षाओं पर संकट
- ग्राम पंचायत अधिकारी परीक्षा
- वन आरक्षी भर्ती
- सचिवालय रक्षक भर्ती
- न्यायिक कनिष्ठ सहायक भर्ती
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