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नैनीताल आए और भट्ट जी के भुट्टे नहीं खाए

उत्तराखंड

हरी चटनी और मक्खन वाले भुट्टे का स्वाद लेने दूरदराज से पर्यटक और अन्य लोग पहुंचते हैं
1988 से नैनीताल रोड पर हल्द्वानी से करीब 16 किलोमीटर दूर दोगांव के पास बेच रहे भुट्टे
हल्द्वानी। भुट्टा बरसात के मौसम में हर किसी ने खाया होगा। पर नैनीताल रोड पर भटट जी का भुट्टा नहीं खाया तो क्या खाया। उनके वहां बिकने वाले मीठे और ताजे भुट्टे का स्वाद सबसे अलग और खास होता है। भट्टजी अब किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। भुट्टे ने ही भट्टजी के नाम को देश-विदेश तक पहुंचा दिया है। आइए जानते हैं भट्टजी का सफरनामा।
मूल अल्मोड़ा निवासी 66 वर्षीय लीलाधर भट्ट ने साल 1988 से दोगांव में मोड़ के पास फड़ में भुट्टे बेचने का काम शुरू किया। धीरे-धीरे उनके भुट्टे का स्वा़द लोगों की जुबां पर इस तरह चढ़ा कि अब देशभर के पर्यटक भी पूछत-पूछते उनकी दुकान तक पहुंचते हैं। मक्खन और हरी चटनी लगा भुट्टा कभी तो ग्राहकों को इतना पसंद आता है कि वह 15 से 20 भुट्टे तक खा जाता है। बातचीत में भट्टजी ने बताया कि स्वाद पसंद आने पर एक ग्राहक 40 भुट्टे तक खा गया। यूपी से पहुंची एक महिला ग्राहक भी 30 भुट्टे खा गई। उन्होंने कहा कि चार से पांच भुट्टे तो हर दूसरा व्यक्ति खा लेता है। कई लोग भुट्टे खाने के बाद ताजे मक्काे भी पैक कराकर ले जाते हैं। माउथ पब्लिसिटी के कारण भुट्टे खाने के लिए पर्यटक और नामी लोग काफी खोजबीन कर उन तक पहुंचते हैं। जब लकड़ी में भुना भुट्टा खाते हैं तो कहते हैं मजा आ गया भट्टजी। अब तो जी भरने तक खिलाइए।

भुट्टे की दुकान से चलाया परिवार
लीलाधर भटट बताते हैं कि भुट्टे की दुकान से उन्होंने अपना परिवार पाला। बच्चों को अच्छी परवरिश देने के साथ उनकी पढ़ाई-लिखाई कराई। बच्चों की शादी करने के अलावा जमीन खरीदी। इस काम ने उनकी जरूरत पूरी की। इसलिए वह युवाओं को भी संदेश देना चाहते हैं कि नौकरी के पीछे मत भागो। कोई काम छोटा नहीं होता है। अगर नौकरी हासिल नहीं हो रही है तो अपना स्वरोजगार करो। अगर धंधा चल गया तो फिर वह आने वाली पीढ़ी के लिए रोजगार के रूप में एक विकल्प रहेगा। भट्टजी का बेटा उत्तराखंड रोडवेज में कार्यरत है। अवकाश वाले दिन उनका बेटा भी इस कारोबार में हाथ बंटाता है।

हर दिन औसतन 400 भुट्टों की बिक्री
भट्टजी बताते हैं कि अप्रैल से शुरू होने वाला भुट्टे का सीजन अमूमन सितंबर तक चलता है। खासकर जुलाई के बाद यह कारोबार पीक पर होता है। सीजन में हर दिन औसतन 400 भुट्टों की बिक्री हो जाती है। कारोबार और उम्र बढ़ने पर भट्टजी ने अपने साथ दो अन्य लोगों को भी रोजगार दिया है। उनका कहना है कि वह मक्का को नौकुचियाताल, सातताल, अमृतपुर, जमरानी आदि क्षेत्रों से खरीदकर लाते हैं। बताते हैं कि सन 1988 में दो रुपये से भुट्टा बेचने की शुरुआत की जो अब 30 रुपये तक पहुंच गया है। पूरी नैनीताल रोड पर भुट्टे के सीजनल कोराबार को 200 से ज्यादा लोग करते हैं। इससे उनकी आजीविका चलती है।

व्यापार की सफलता में ईमानदारी को भी देते हैं तरजीह
दुकानदार लीलाधर भट्टजी बताते हैं कि भुटटे का कारोबार फलने-फूलने में ईमानदारी का बड़ा हाथ है। उनकी ईमानदारी की भी लोग मिसालें देते हैं। दुकान में आने वाले ग्राहक मोबाइल से लेकर पर्स तो कभी अन्य कीमती समान भूल जाते हैं। वह कहते हैं कि सामान दुकान में छूटने पर वह उसे जिम्मेदारी से अपने पास रखते हैं। हर बार संबंधित ग्राहक के आने पर सामान को सुरक्षित देते हैं। कहते हैं कि ऊपर वाला सब देखता है। ईमानदारी और मेहनत को वह अपनी सफलता का श्रेय देते हैं।

हमारी कोई ब्रांच नहीं है नक्कालों से सावधान
भट्टजी के फड़ के आगे लगा बोर्ड उत्तहराखंड का तोहफा भट्टजी का भुटटा वैसे तो लोगों की सुविधा के लिए है लेकिन चार बाई चार के इस बोर्ड में लिखा ‘हमारी कोई ब्रांच नहीं है नक्कालों से सावधान’ हर किसी की जिज्ञासा बढ़ा देती है। इन पंक्तियों को पढ़कर अक्सकर ग्राहक पूछ लेते हैं कि भट्टजी यह लिखवाने की नौबत क्यों आई। इस पर लीलाधर भट्ट का कहना है कि कई लोग उनके नाम से दुकान करने लगे थे। इससे उनका कारोबार और नाम प्रभावित होने लगा था। इस कारण उन्होंने यह बोर्ड लगाया वरना इसकी जरूरत नहीं थी। बोर्ड में भुट्टा डाट कॉम और मोबाइल नंबर का जिक्र होने के साथ 15 अगस्त 1988 से आपकी सेवा में सदैव तत्पर भी अंकित है।

दोगांव के पास स्थित दुकान।

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